Essay on Raksha Bandhan in Hindi | रक्षाबंधन पर निबंध

Essay on Raksha Bandhan in Hindi : नमस्कार दोस्तों !! हिंदी निबंध की श्रेणी में आज हम बहुत ही खास त्यौहार की बात करने वाले है। हम सभी भारत को त्योहारों की भूमि के रूप में जानते है। भारत विविधता में एकता रखने वाला देश है और यहाँ हर धर्म के लोग मिल झूलकर रहते है। तो आज इस स्पेशल आर्टिकल में हम रक्षाबंधन पर निबंध आपके लिए लेकर आये है। रक्षाबंधन भाई बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता त्यौहार है और इस पोस्ट में हम निबंध तो लाये ही है साथ में रक्षाबंधन का इतिहास और रक्षाबंधन का ऐतिहासिक महत्त्व 
भी आपके सामने रखेंगे। तो आये अब रक्षाबंधन के बारे में इस रोचक और तथ्यपूर्ण आर्टिकल को आगे बढ़ाते है।


Essay on Raksha Bandhan in Hindi | Raksha Bandhan par Nibandh

रक्षा बंधन एक हिन्दू त्यौहार है जिसे खासकर भाई बहन के पवित्र रिश्ते से जोड़ा गया है। हिन्दू के साथ साथ जैन लोग भी रक्षाबंधन मनाते है। रक्षाबंधन को राखी के नाम से भी जाना जाता है। राखी के साथ साथ उसे सलूनो, श्रावणी या फिर बलेव के नाम से भी जाना जाता है। 

Essay on Raksha Bandhan in Hindi | Raksha Bandhan par Nibandh


रक्षाबंधन कब मनाई जाती है ?

रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण मास को सावन के नाम से भी जाना जाता है। श्रावण में आने के कारण रक्षाबंधन को श्रावणी या सलूनो के नाम से जाना जाता है।  

रक्षाबंधन में सबसे ज्यादा महत्त्व राखी का होता है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और उसकी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है। राखी को रक्षासूत्र के नाम से भी जाना जाता है। राखी के रूप में कच्चे सूत से लेके रंगबिरंगी धागा, रेशमी डोर या फिर सोने चाँदी की कोई चीज़ जिसे कलाई पर बाँधा जा सके वो भी हो सकती है। 


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रक्षाबंधन कैसे मनाते है ?

आम तोर पर बहनें भाई को राखी बांधती है लेकिन कई जगहों पर ब्राह्मण और गुरु भी अपने यजमान को राखी बांधते है। राखी के दिन सभी सुबह जल्दी उठ जाते है और स्नान आदि पूर्ण करके राखी सेलिब्रेशन के लिए तैयार हो जाते है। 

महिलाए या फिर लड़कियाँ रक्षाबंधन  पूजा की थाली तैयार करती है। पूजा की थाली में राखी रखी जाती है और साथ में ही दीपक, चावल, कुमकुम और मिठाई भी रखी जाती है। सबसे पहले लड़के तैयार होकर स्थान पर बैठते है। इसके बाद बहन उसको कुमकुम का तिलक करती है और उसपर चावल लगाती है। 

भाई की दाई कलाई पर राखी बंधी जाती है और उसकी आरती उतारी जाती है। बहन अपने भाई की रक्षा और लम्बी उम्र की कामना करती है तो भाई उसकी रक्षा करने का वचन देता है। दोनों एकदूसरे का मुंह मीठा करवाते है और इस तरह बहुत ही प्यार से यह त्यौहार मनाया जाता है। 

रक्षाबंधन भाईदूज की तरह ही भाई बहन की रिश्तों की महत्ता दर्शाता है। कई जगहों पर रक्षाबंधन के दिन वृक्षों की रक्षा करने के लिए पेड़ो को भी राखी बांधते है। 

रक्षाबंधन का इतिहास या ऐतिहासिक महत्त्व 

रक्षा बंधन की शुरुआत कैसे हुई इसके बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है लेकिन भविष्य पुराण में रक्षाबंधन से संबंधित जानकारी अवश्य मिलती है। रक्षाबंधन से जुड़े ३ ऐसे प्रसंग के बारे में हम यहाँ  आपको जानकारी देंगे।

प्रसंग 1 : एक बार जब देव और दानव का युद्ध जारी था तब दानवो उन पर भारी पड़ते नजर आये। देवो के राजा इन्द्र ने बृहस्पति के पास जाकर उनको इसके बारे में बताया। इन्द्र की पत्नी, इंद्राणी उस वक्त वही पे थी। उन्होंने पूरी बात सुनी और रेशम का एक धागा अभिमंत्रित कर इन्द्र की कलाई पर बांध दिया। इन्द्र की उस लड़ाई में जीत हुई। वो दिन श्रावणी पूर्णिमा का था। लोगो को विश्वास आने लगा के श्रावण पूर्णिमा के दिन बाँधा जाने वाला धागा शक्ति, सुरक्षा और विजय का विश्वास दिलाता है। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन मनाई जाती है।

प्रसंग 2 : रक्षाबंधन से जुडी दूसरी कथा राजा बलि और भगवन विष्णु (One of the birth of Lord Krishna) के साथ जुडी है। जब बलि राजा ने 100 यज्ञ सम्पन्न किये तो उन्होंने स्वर्ग को देवताओ से छीनने का प्रयत्न किया। घबराए देवताओं ने भगवान विष्णु को इस संकट से बचने के लिए प्रार्थना की।

भगवन विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में बलि राजा के पास जाकर भिक्षा में तीन कदम जमीन मांगी। बलि राजा के गुरु ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया लेकिन बलि राजा नहीं मानेऔर उन्होंने तीन कदम भूमि दान कर दी।

भगवन विष्णु ने दो कदम में ही सारा आकाश और धरती ले ली। जब विष्णु ने तीसरे कदम की मांग की तो बलि राजा ने अपना सिर उनके आगे जुका दिया। विष्णु भगवान ने उसके सिर पर कदम रखकर उसे रसातल भेज दिया।

लेकिन बलि ने अपने तपोबल के जरिये विष्णु को रात दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। अब भगवन के घर न आने के कारण लक्ष्मी देवी परेशान हो गई और नारद जी से उपाय माँगा। नारदजी के उपाय को मानते हुए लक्ष्मीजी ने बलि को अपना भाई बना लिया और विष्णु जी को बलि के साथ घर ले आई। वो दिन भी श्रावण पूर्णिमा का था इसी लिए रक्षाबंधन को बलेव भी कहते है।

प्रसंग 3 : मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह की  मेवाड़ पर करने वाली चढ़ाई की गुप्त सुचना मिल चुकी थी। रानी अकेली बहादुरशाह की सेना से लड़ने में असमर्थ थी इसी लिए उन्होंने मुग़ल बादशाह हुमायुँ को राखी भेजी और उन्हें मेवाड़ की रक्षा करने की विनती की।

हुमायुँ मुसलमान था फिर भी उसने उस राखी की लाज रखी और कर्मावती को मदद की और उनके राज्य की रक्षा की।  

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