संत कबीर हिंदी के जाने माने और काफी सन्माननीय नामों में से एक है। कबीर के दोहे उसके अर्थपूर्ण उपदेश के लिए काफी जाने जाते है और कबीर का नाम हिंदी कविओं में बहुत आदर से लिया जाता है। इस लेख में आप
संत कबीर दास जी का जीवन परिचय, कबीर दास जी के दोहे हिंदी में अर्थ सहित प्राप्त करेंगे और इस आर्टिकल को आप कबीर जी पर निबंध के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते है। कबीर दास इन हिंदी का यह आर्टिकल आपके ज्ञान में तो वृद्धि करेगा ही पर साथ साथ में कबीर वाणी आपके जीवन में भी एक हकारात्मक सोच लायेगा।
कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das in Hindi
कबीर हिंदी साहित्य के महिमा मण्डित और आदरणीय व्यक्तित्व है। कबीर को संत कबीर या फिर कबीरा या कबीर दास के नाम से भी जाना जाता है। संत कबीर भारत के गूढ़ कवि और संत थे। कबीर को गूढ़ या रहस्यवादी कवि इस लिए कहा जाता है क्यूंकि उनके मुताबिक मनुष्य ईश्वर की अनुभूति बिना किसी किताब या मनुष्य की मदद से सीधे सीधे ही कर सकता है। भगवान से मिलने के लिए किसी व्यक्ति या किताब की जरुरत नहीं है ऐसा वो निश्चितरुप से मानते थे।
कबीर का जन्म : कबीर का जन्म 1398 में वाराणसी (अभी उत्तर प्रदेश ) में हुआ था। विक्रम सम्वत के मुताबिक उनका जन्म 1455 में हुआ था। कबीर के जन्म और पालन के बारे में एक निश्चित राय नहीं है की कबीर नीमा और नीरू की वास्तविक संतान थे या फिर उन्होंने कबीर का पालन पोषण किया था। लेकिन यह बात निश्चित है की वो नीमा और नीरू नामके मुस्लिम बुनकर परिवार में पले बढे। कबीर ने स्वयं को इस रूप में प्रस्तुत किया है।
"जाति जुलाहा, नाम कबीरा
बनि बनि फिरो उदासी।'
कबीर के गुरु : वैष्णव संत रामानंद को कबीर के गुरु के रूप में जाना जाता है। कबीर के गुरु के लिए यह कहानी काफी प्रचलित है की कबीर रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे पर रामानंद ने उन्हें अपना गुरु बनाने से इन्कार कर दिया था। पर कबीर ने रामानंद को ही अपना गुरु बनाने का ठान लिया था और इसके लिए कबीर ने एक युक्ति की। कबीर जानते थे की रामानंद सुबह 4 बजे उठकर गंगा स्नान करने जाते थे। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।
कबीर की मृत्यु : कबीर का पूरा जीवन काशी में ही गुजरा लेकिन मरने के समय वो मगहर चले गए थे। कहा जाता है की कबीर के विरोधियोँ ने उन्हें मगहर जाने के लिए मजबूर किया था जिससे उनको मुक्ति न मिल पाए। कबीर भी मगहर जाकर काफी दुखी थे। कबीर की मृत्यु मगहर में ही 1518 में हुई।
कबीर के दोहे | कबीर दोहे | कबीर दास के दोहे | कबीर दास जी के दोहे
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी मणि जाती है जिसमे हिंदी भाषा की सभी बोलियां शामिल हो जाती है। कबीर के शिष्यों ने कबीर की वाणी का संग्रह बीजक नामक ग्रन्थ में किया है जिसमे साखी, सबद और रमैनी जैसे तीन भाग है। कबीर पढ़े लिखे नहीं थे और उनके शिष्यों ने उनके द्वारा बोली गई वाणी को लिखा। कबीर के अनुयायीओ ने कबीर पंथ की स्थापना की। इन सभी में कबीर की अमृत वाणी काफी प्रचलित हुई उसे हम कबीर के दोहे के रूप में भी जानते है।
कबीर के दोहे काफी असरदार ढंग से कम शब्दों में बहुत कुछ बोल देते है। कबीर ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों की कई नितिरीतियो भी उठाये जिसकी वजह से वे धर्मगुरु ओ में अप्रिय भी रहे। पर कबीर को इन किसी बातो से फरक नहीं पड़ा।
कबीर के दोहे इन हिंदी | कबीर के दोहे अर्थ सहित | Dohe of Kabir in Hindi
दोहा
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ
कबीर जी इस दोहे में कहते है की जब जब मेने संसार में बुराई की खोज की तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला और जैसे ही मैंने अपने अंदर देखा तो पाया की मुझसे बुरा कोई है ही नहीं।
*****
दोहा
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ
इस अर्थपूर्ण दोहे में कबीर दास यह कहना चाहते है की किसी भी सज्जन व्यक्ति को उसकी जाति से नहीं किन्तु उसके ज्ञान से आँकना चाहिए। असली मोल तलवार का होता है न की उसको ढकने वाले पात्र यानि की म्यान का।
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दोहा
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ
अपनी निंदा करने वालो का महत्त्व समझाते हुए कबीर कहते है की जो भी हमारी निंदा करता है उसे हमे अपने जितना पास हो सके उतना पास ही रखना चाहिए क्यूंकि वो बिना साबुन और बिना पानी हमारी कमियाँ बताता है और हमारे स्वभाव को निर्मल करने में मदद करता है।
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दोहा
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
अर्थ
सबसे अच्छा संबंध बनाते रहने पर कबीर कहते है की इस संसार रूपी बाज़ार में खड़े रहकर में यही चाहता हु की सबका भला हो। अगर किसी से दोस्ती न हो तो उससे दुश्मनी भी न हो।
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दोहा
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
अर्थ
बड़ा होने के बावजूद अगर हम किसी के काम नहीं आते तो फिर हमारे बड़े बनने का कोई मोल ही नहीं है। कबीर दास जी ने खजूर के पेड़ का उदाहरण देकर इस चीज़ को वाकई में शानदार ढंग से समझाया है। खजूर का पेड़ काफी लम्बा होता है लेकिन वो न तो ढंग की छाँव दे पाता है और उसके फल भी बहुत ऊपर होते है जिससे कोई उसको खाकर अपनी भूख भी नहीं मिटा पाता।
*****
दोहा
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय,
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।
अर्थ
धन का ज्यादा मोह न रखने की सलाह देते हुए कबीर कहते है की हमें उतना धन ही इकठ्ठा करना चाहिए जितना भविष्य में उपयोग में आ सके। ज्यादा धन इकठ्ठा करने का कोई फायदा नहीं है क्यूंकि सर पर धन की पोटरी बांध कर साथ ले जाते हुए तो किसी को नहीं देखा।
*****
दोहा
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
अर्थ
धर्म के नाम पर लड़ने वालो के लिए संत कबीर ने बहुत ही अर्थपूर्ण बात कही है। कबीर कहते है की हिन्दू कहते है की उन्हें राम प्यारा है और मुस्लिम कहते है उन्हें रहमान प्यारा है। इसी बात पर वो लड़ लड़ कर मौत के मुंह तक जा पहुंचे लेकिन असली मर्म इनमे से कोई न जान पाया।
*****
दोहा
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ
प्रयत्न का महिमा मंडन करते हुए कबीर जी इस वाणी में कहते है की जो जैसा प्रयत्न या कोशिश करते है उसको वैसा मिल ही जाता है। अथाग मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ना कुछ अनमोल उसे मिल ही जाता है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो डूब जाने के डर से किनारे पर ही बैठे रहते है और उन्हें कुछ भी नहीं मिलता।
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दोहा
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
अर्थ
बड़ा होने के बावजूद अगर हम किसी के काम नहीं आते तो फिर हमारे बड़े बनने का कोई मोल ही नहीं है। कबीर दास जी ने खजूर के पेड़ का उदाहरण देकर इस चीज़ को वाकई में शानदार ढंग से समझाया है। खजूर का पेड़ काफी लम्बा होता है लेकिन वो न तो ढंग की छाँव दे पाता है और उसके फल भी बहुत ऊपर होते है जिससे कोई उसको खाकर अपनी भूख भी नहीं मिटा पाता।
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दोहा
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय,
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।
अर्थ
धन का ज्यादा मोह न रखने की सलाह देते हुए कबीर कहते है की हमें उतना धन ही इकठ्ठा करना चाहिए जितना भविष्य में उपयोग में आ सके। ज्यादा धन इकठ्ठा करने का कोई फायदा नहीं है क्यूंकि सर पर धन की पोटरी बांध कर साथ ले जाते हुए तो किसी को नहीं देखा।
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दोहा
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
अर्थ
धर्म के नाम पर लड़ने वालो के लिए संत कबीर ने बहुत ही अर्थपूर्ण बात कही है। कबीर कहते है की हिन्दू कहते है की उन्हें राम प्यारा है और मुस्लिम कहते है उन्हें रहमान प्यारा है। इसी बात पर वो लड़ लड़ कर मौत के मुंह तक जा पहुंचे लेकिन असली मर्म इनमे से कोई न जान पाया।
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दोहा
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ
प्रयत्न का महिमा मंडन करते हुए कबीर जी इस वाणी में कहते है की जो जैसा प्रयत्न या कोशिश करते है उसको वैसा मिल ही जाता है। अथाग मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ना कुछ अनमोल उसे मिल ही जाता है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो डूब जाने के डर से किनारे पर ही बैठे रहते है और उन्हें कुछ भी नहीं मिलता।
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